Saturday, 14 September 2019

ख्वाब

एक आंधी आई,
साथ अपने मुसीबतें लाई,
कमरे का सारा सामान बिखर गया,
बरसों पुराने ख्वाब,
बरसों से धूल खा रहेे थे जो,
लकड़ी वाली अलमारी के,
सबसे ऊपर वाले तख्ते पर,
वह गिरे पढ़ें थे जमीन पर,
ख्वाब, जो कभी हुआ करतेे थे जिंदगी,
वह भूल से गए थे,
कहीं खो से गए थे,
जिंदगी की कशमकश में।

एक नजर मिली,
उन अपने ख्वाबों से,
ख्वाब, जो पराया कर दिए गए,
ख्वाब, जो भुला दिए गए,
ख्वाब, जो दबा दिए गए,
तो मानो ऐसा लगा, जैसे,
कहीं अचानक से टकरा गए हो,
अपने यौवन की उस पहली मोहब्बत से,
मोहब्बत, जो कभी हुआ करती थी जिंदगी,
मोहब्बत, जो भूला दी गई थी,
मोहब्बत, जो दबा दी गई थी,
समाज और रिवाज के चक्कर में,
परिवार और जात के चक्कर में,
कुंडली और मंगली के चक्कर में,
मोहब्बत, जो कभी हुआ करती थी जिंदगी,
कहीं खो सी गई थी,
जिंदगी की कशमकश में।

एक मुलाकात कराई,
बरसो पुराने ख्वाब ने,
हमारी खुद हमसे,
हम, जो बहुत बदल से गए थे,
हम, जो बहुत बिखर सेे गए थे,
हम, जो बहुत उलज से गए थे,
हम, जो बहुत पास थे,
दुनिया के सफलता के मापदंड से,
लेकिन हम जो बहुत दूर थे,
खुद की खुशी और संतुष्टि की परिभाषा से,
तो मानो ऐसा लगा,
की यह जो आंधी आई,
साथ अपने मुसीबतें लाई,
कमरे का सारा सामान बिखेर दिया,
यह आंधी आई ही है,
दिखाने उन पुराने, भूला दिए गए,
ख्वाबों को,
और उन धूल खा रहे ख्वाबोंं के सहारे,
एक मुलाकात कराने,
हमारी खुद हमसे।

एक बात हुई,
आंधी और मुसीबतों के बीच,
बहती भावनाओं और बरसते बादलों के बीच,
एक बात हुई,
मेरे पुराने ख्वाब और मेरे आज के बीच,
मेरी आज की कशमकश और पुराने खुद के बीच,
मेरी खुशी और संतुष्टि की परिभाषा,
और दुनिया के सफलता के मापदंड के बीच,
तो मानो ऐसा लगा, जैसे,
किसी सोने के पिंजड़े में कैद पंछी को,
किसी ने वापस उड़ने के लिए आजाद कर दिया हो,
किसी ऊंचे बादलों के बीच, ऊपर आसमान में,
हमेशा हमेशा के लिए।

एक एहसास हुआ,
बरसों से समाज और रिवाज,
बरसों से फायदे और नुकसान,
बरसों से डर और संदेह,
बरसों से दूसरों के सही और गलत
के कोरे ज्ञान के बीच,
एक उधार की,
बरसों से, नकली, बनावटी, खोखली, अधूरी,
जिंदगी जी रहेे थे हम,
बरसों से, जिंदगी जी नहीं,
जिंदगी काट रहे थे हम।
ख्वाब, जो कभी हुआ करतेे थे जिंदगी,
जो भूल से गए थे,
कहीं खो से गए थे,
जिंदगी की कशमकश में,
उन्हीं ख्वाबों को,
लकड़ी वाली अलमारी के,
 सबसे ऊपर वाले तख्ते से,
 उठाना और वापस दिल में बसाना,
उन्हीं ख्वाबों से,
धूल को हटाना और वापस सजाना,
उन्हीं ख्वाबों को,
एक दिन हकीकत बनाना,
ही तो जिंदगी है।

2 comments:

चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।

बहुत दिन हो गया कुछ लिखें, चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं। इस दिखावटी बनावटी दुनिया में, यह लिखना ही तो है जहां अक्सर, खुद की मुलाकात होत...