कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
महादेव का यह मंदिर भी तो दुनिया सा ही है।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
ये क्या हो रहा है, कुछ समझ नहीं आ रहा है।
जो जा रहा है, आने के लिए ही,
उसको समझ में आएगा भी तो कैसे?
हिलते डुलते, अशांत, विचलित,
अस्थिर, मैले पानी में अपना असली अक्स,
नजर आएगा भी तो कैसे?
अपना असली अक्स देखनेेे के लिए,
पानी को स्थिर, शांत, साफ करना होगा।
जो हो रहा है, वोह समझने के लिए,
नंदी जैैैसा होना होगा।
नंदी जो स्थिर है, शांत है, सिद्ध है।
नंदी जो सबके बीच है ,फिर भी महादेव के करीब है।
कोई भी गतिमान, गतिशील,
को समझने के लिए स्थिर होना होगा,
घूमते लट्टटु को समझने के लिए, धूरी होना होगा,
उतार-चढ़ाव को समझनेेेेे के लिए समभाव होना होगा।
जो हो रहा है, वोह समझने के लिए,
नंदीजैैै सा होना होगा।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
सबकी नजर चमकते स्वर्ण के नंदी पर है,
पर नंदी की नजर महादेव के भस्म पर है
स्वर्ण का होके भी, ना स्वर्ण का मोह है,
ना जगत की माया,महादेव के भक्ति में वोह है समाया।
जो हो रहा है, वोह समझने के लिए,
स्वर्ण नंदी जैैैसा होना होगा।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
महादेव का यह मंदिर भी तो दुनिया सा ही है।
कोई जा रहा है, भक्त्ति की सीढ़ी चढ़कर,
वहां ,ऊपर, महादेव के पास,
लेकिन मन में अभी भी है कई सारे संदेह,
लेकिन मन में अभी भी है कई सारे सवाल,
और कुछ मन्नते, ढेर सारी जिम्मेदारियोंं का बोझ,
किसी गृहस्थ महिला की तरह,
और मन भी है थोड़ा हताश,
कोई जा रहा है, भक्त्ति की सीढ़ी चढ़कर,
वहां, ऊपर, महादेव के पास,
वहां, ऊपर, अगर हो गई मुलाकात,
तो दूर हो जाएंगे सारे संदेह,
तो सुलझ जाएंगे सारे सवाल,
ना रहेंगी कोई मन्नतें,
ना रहेगी कुछ पाने की खुशी,
ना ही रहेगा कुछ खोनेे का गम,
फिर कोई जो आएगा वापस,
फिर वो होगा,
किसी निश्छल निर्मल मासूम बालक की तरह,
काम क्रोध मोह लोभ से कोसो दूर।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
महादेव का यह मंदिर भी तो दुनिया सा ही है।
No comments:
Post a Comment