बहुत दिन हो गया कुछ लिखें,
चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।
इस दिखावटी बनावटी दुनिया में,
यह लिखना ही तो है जहां अक्सर,
खुद की मुलाकात होती है खुद से,
चलो पूूष की एक सुंदर-सर्द रात में,
सदियोंं बाद खुद से फिर मिलते हैं ,
बदन को कंपकपाती सर्द हवाएं,
सुखी लकड़ियां जो है सुलगाएं,
इस थंठे-गरम अद्भुत मिश्रण का,
एक प्याली गरम अदरक की चाय के साथ,
थोड़ा फुर्सत में मजा लेते हैं,
बहुत दिन हो गया कुछ लिखें,
चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।
व्हाट्सएप ग्रुप चैट्स से निकल कर,
गंगा किनारे उस घर की छत पर,
चलो यारों के साथ थोड़ा फुर्सत में,
थोड़ा बैठते हैं, चहकते है, बहकतेे है,
छोटी सी ज़िंदगी, बड़ी सी जिम्मेदारियों में,
उलझे हुए यारों को थोड़ा तंज कसते हैं
नीचे पावन-निर्मल गंगा की धारा,
ऊपर टिमटिमाते हीरो से तारा,
को घंटों, बस यूं ही, थोड़ा तकते हैं,
बहुत दिन हो गया कुछ लिखें,
चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।
चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।
इस दिखावटी बनावटी दुनिया में,
यह लिखना ही तो है जहां अक्सर,
खुद की मुलाकात होती है खुद से,
चलो पूूष की एक सुंदर-सर्द रात में,
सदियोंं बाद खुद से फिर मिलते हैं ,
बदन को कंपकपाती सर्द हवाएं,
सुखी लकड़ियां जो है सुलगाएं,
इस थंठे-गरम अद्भुत मिश्रण का,
एक प्याली गरम अदरक की चाय के साथ,
थोड़ा फुर्सत में मजा लेते हैं,
बहुत दिन हो गया कुछ लिखें,
चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।
व्हाट्सएप ग्रुप चैट्स से निकल कर,
गंगा किनारे उस घर की छत पर,
चलो यारों के साथ थोड़ा फुर्सत में,
थोड़ा बैठते हैं, चहकते है, बहकतेे है,
छोटी सी ज़िंदगी, बड़ी सी जिम्मेदारियों में,
उलझे हुए यारों को थोड़ा तंज कसते हैं
नीचे पावन-निर्मल गंगा की धारा,
ऊपर टिमटिमाते हीरो से तारा,
को घंटों, बस यूं ही, थोड़ा तकते हैं,
बहुत दिन हो गया कुछ लिखें,
चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।