Sunday 12 January 2020

चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।

बहुत दिन हो गया कुछ लिखें,
चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।

इस दिखावटी बनावटी दुनिया में,
यह लिखना ही तो है जहां अक्सर,
खुद की मुलाकात होती है खुद से,
चलो पूूष की एक सुंदर-सर्द रात में,
सदियोंं बाद खुद से फिर मिलते हैं ,
बदन को कंपकपाती सर्द हवाएं,
सुखी लकड़ियां जो है सुलगाएं,
इस थंठे-गरम अद्भुत मिश्रण का,
एक प्याली गरम अदरक की चाय के साथ,
थोड़ा फुर्सत में मजा लेते हैं,
बहुत दिन हो गया कुछ लिखें,
चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।

व्हाट्सएप ग्रुप चैट्स से निकल कर,
गंगा किनारे उस घर की छत पर,
चलो यारों के साथ थोड़ा फुर्सत में,
थोड़ा बैठते हैं, चहकते है, बहकतेे है,
छोटी सी ज़िंदगी, बड़ी सी जिम्मेदारियों में,
उलझे हुए यारों को थोड़ा तंज कसते हैं
नीचे पावन-निर्मल गंगा की धारा,
ऊपर टिमटिमाते हीरो से तारा,
को घंटों, बस यूं ही, थोड़ा तकते हैं,
बहुत दिन हो गया कुछ लिखें,
चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।

Friday 27 September 2019

मैंने देखा है।

मैंने जरूरतों में वादों से मुकरते देखा है,
मैंने जनाजो में कंधो को बदलते देखा है।

मैंने हुनर को किस्मत से लड़ते देखा है,
मैंने देश के भविष्य को ढाबो मैं बर्तन रगड़ते देखा है।

मैंने निवाला फेंकते अमीरों के रसूख को देखा है,
मैंने दो दिन से भूखे गरीब की भूख को देखा है ।

मैंने दिल्ली संसद में मेरा भारत महान चिल्लाने वालों को देखा है,
मैंने सर्दी में बिन कंबल सड़कों पर सोते-चिल्लाने वालों को देखा है।

मैंने इंडिया में दौड़़ती महंगी एसी गाड़ियों को देखा है,
मैंने भारत में पसीनो से लिपटे रिक्शा वालों को देखा है।

मैंने शहरों में होते विकास को देखा है,
मैंने गांव में किसानों के विनाश को देखा है।

मैंने सीमा रेखा पर शहीद होते जवानोंं को देखा है,
मैंने गरीबी से आत्महत्या करते किसानोंं को देखा है।

मैंने कसमें-वादे करते बेईमानों को देखा,
मैंने कुर्सी के लिए बिकते ईमानो को देखा है।

मैंने एकता सौहार्द का पाठ पढ़ाते पंडित इमाम को देखा है,
मैंने धर्म के नाम पर भाई-भाई को लड़ाते शैतान को देखा है।

मैंने दिन में एक थाली में खाते दो इंसान को देखा है,
मैंने रात में हिंदू मुसलमान करके लड़ते दो हैवान को देखा है।

मैंने छप कर बिकते अखबारों को देखा है,
मैंने बिक कर छपते अखबारोंं को देखा है।

मैंने नफा-नुकसान नापतोल करके खबर चलाने वालोंं को देखा है,
मैंने टीआरपी, ताकत, शोहरत, के भूखे उन दलालों को देखा है।

मैंने किट्टी पार्टी में पेग लगाती फेमिनिज्म की कोरी दलीलो को देखा है,
मैंने 8000 पेड़ लगाती पद्म श्री साल्लुमरदा थिमक्का को देखा है।

मैंने अद्वैत्य वेदांत के महान ज्ञान को देखा है,
मैंने जात-पात, ऊंच-नीच करते ढोंगी विद्वान को देखा है।

मैंने जरूरतों में वादों से मुकरते देखा है,
मैंने जनाजो में कंधो को बदलते देखा है।





Saturday 14 September 2019

ख्वाब

एक आंधी आई,
साथ अपने मुसीबतें लाई,
कमरे का सारा सामान बिखर गया,
बरसों पुराने ख्वाब,
बरसों से धूल खा रहेे थे जो,
लकड़ी वाली अलमारी के,
सबसे ऊपर वाले तख्ते पर,
वह गिरे पढ़ें थे जमीन पर,
ख्वाब, जो कभी हुआ करतेे थे जिंदगी,
वह भूल से गए थे,
कहीं खो से गए थे,
जिंदगी की कशमकश में।

एक नजर मिली,
उन अपने ख्वाबों से,
ख्वाब, जो पराया कर दिए गए,
ख्वाब, जो भुला दिए गए,
ख्वाब, जो दबा दिए गए,
तो मानो ऐसा लगा, जैसे,
कहीं अचानक से टकरा गए हो,
अपने यौवन की उस पहली मोहब्बत से,
मोहब्बत, जो कभी हुआ करती थी जिंदगी,
मोहब्बत, जो भूला दी गई थी,
मोहब्बत, जो दबा दी गई थी,
समाज और रिवाज के चक्कर में,
परिवार और जात के चक्कर में,
कुंडली और मंगली के चक्कर में,
मोहब्बत, जो कभी हुआ करती थी जिंदगी,
कहीं खो सी गई थी,
जिंदगी की कशमकश में।

एक मुलाकात कराई,
बरसो पुराने ख्वाब ने,
हमारी खुद हमसे,
हम, जो बहुत बदल से गए थे,
हम, जो बहुत बिखर सेे गए थे,
हम, जो बहुत उलज से गए थे,
हम, जो बहुत पास थे,
दुनिया के सफलता के मापदंड से,
लेकिन हम जो बहुत दूर थे,
खुद की खुशी और संतुष्टि की परिभाषा से,
तो मानो ऐसा लगा,
की यह जो आंधी आई,
साथ अपने मुसीबतें लाई,
कमरे का सारा सामान बिखेर दिया,
यह आंधी आई ही है,
दिखाने उन पुराने, भूला दिए गए,
ख्वाबों को,
और उन धूल खा रहे ख्वाबोंं के सहारे,
एक मुलाकात कराने,
हमारी खुद हमसे।

एक बात हुई,
आंधी और मुसीबतों के बीच,
बहती भावनाओं और बरसते बादलों के बीच,
एक बात हुई,
मेरे पुराने ख्वाब और मेरे आज के बीच,
मेरी आज की कशमकश और पुराने खुद के बीच,
मेरी खुशी और संतुष्टि की परिभाषा,
और दुनिया के सफलता के मापदंड के बीच,
तो मानो ऐसा लगा, जैसे,
किसी सोने के पिंजड़े में कैद पंछी को,
किसी ने वापस उड़ने के लिए आजाद कर दिया हो,
किसी ऊंचे बादलों के बीच, ऊपर आसमान में,
हमेशा हमेशा के लिए।

एक एहसास हुआ,
बरसों से समाज और रिवाज,
बरसों से फायदे और नुकसान,
बरसों से डर और संदेह,
बरसों से दूसरों के सही और गलत
के कोरे ज्ञान के बीच,
एक उधार की,
बरसों से, नकली, बनावटी, खोखली, अधूरी,
जिंदगी जी रहेे थे हम,
बरसों से, जिंदगी जी नहीं,
जिंदगी काट रहे थे हम।
ख्वाब, जो कभी हुआ करतेे थे जिंदगी,
जो भूल से गए थे,
कहीं खो से गए थे,
जिंदगी की कशमकश में,
उन्हीं ख्वाबों को,
लकड़ी वाली अलमारी के,
 सबसे ऊपर वाले तख्ते से,
 उठाना और वापस दिल में बसाना,
उन्हीं ख्वाबों से,
धूल को हटाना और वापस सजाना,
उन्हीं ख्वाबों को,
एक दिन हकीकत बनाना,
ही तो जिंदगी है।

Tuesday 10 September 2019

सवाल


तुम जो बैठी हो हमारे सामने,
अपनी उड़ती जुल्फोंं को कानों के पीछे,
फसाने की कोशिश करती हुई,
रखकर सर पर अपना दाया हाथ,
तुम्हारी झुकी हुई, बड़ी-बड़ी,
काजल लगाई हुई आंखों में,
नाराजगी देख सकते हैं हम।
उस दिन, जो instagram story,
Update की थी तुमने,
'Ask me anything' वाली,
सबने कोई ना कोई सवाल पूछा तुमसे,
लेकिन हमनेेे कोई सवाल ना पूछा।
अब तुम ही बताओ, छोड़ो यह बच्चोंं जैसी नाराजगी,
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
सबके जवाब तो पहलेेे से हमको है पता,
और जिन सवालोंं के जवाब हमको नहीं पता,
तुम भी तो उन्हीं के जवाब ढूंढ रही हो ना?

क्या सवाल पूछूं तुमसे?
किसी दिन, सुबह,
हम bed tea पीना भूल जाते हैं,
लेकिन तुम अपने ख्वाबोंं से जागते ही,
जो पहला काम करती हो,
वह है, good morning message भेजना हमको,
और यह good morning बस good morning ही नहीं,
इसका मतलब अपनी आंखों को खोलते ही,
जो पहला ख्याल आताा है तुमको,
वह हम हैं।
किसी दिन, रात को,
हम घर के दरवाजे lock करना भूल जाते हैं,
लेकिन तुम, अपने ख्वाबों में जाने से पहले,
जो आखिरी काम करती हो,
वह है, good night message भेजना हमको।
और यह, good night बस good night ही नहीं,
इसका मतलब आंखों को बंद करने से पहले,
जो आखरी खयाल आता है तुमको,
वह भी हम हैं।
किसी दिन बिना मन,
बिना भूख के भी,
खाना खा लेते हैं हम,
क्योंकि पता है हमको,
तुम, खाना खाते वक्त,
रोज, हर बार, पूछोगी हमसे,
खाना खाए कि नहीं तुम?
जो तुम, अक्सर, बात बात में,
पूछती रहती हो हमसे,
'कैसे होो', 'कैसे हो' ?
जबकि पता रहता है तुमको,
मेरा जवाब,
'अच्छा हूं ', ही होता है।
फिर भी, जो तुम पूछती रहती हो हमसे,
कैसे हो, कैसे हो?
कैसे पूछूंं तुमसे, फिर यह सवाल,
की कितनी मोहब्बत करती हो हमसे?
जब हम, हर दिन, हर वक्त,
महसूस करतेे हैं,
तुम्हारी मोहब्बत को,
तुम्हारी परवाह को,
तुम्हारी चिंता को।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
सबके जवाब तो पहलेेे से हमको है पता,
और जिन सवालोंं के जवाब हमको नहीं पता,
तुम भी तो उन्हीं के जवाब ढूंढ रही हो ना?

क्या सवाल पूछूं तुमसे? 
कि तुमको CCD का cappuccino पसंद है या 
Starbucks का?
जबकि पता है हमको,
तुम तो, वह नुक्कड़ वाली,
सोन्धे से कुल्हड़ में मिलने वाली,
अदरक वाली चाय की दीवानी हो।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
कि तुमको Chinese पसंद है या Continental?
जबकि पता है हमको,
तुम तो, वह शर्मा जी के गोलगप्पे,
आलू चाट और टमाटर चाट,
खाने के लिए, अपनेेे घर सेे,
पैसे चुराया करती थी।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
कि तुमको Trance पसंद है या Rock?
जबकि पता है हमको,
तुम तो, जब भी, अकेली होती हो,
वह गुलजार की लिखी गजलें सुनती हो,
रोज, रात को, कमरेे की बत्तियां बुझा करके,
और गुनगुनाती रहतीी है उनकी कुछ नज़्मों को।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
कि तुमको Beaches पसंद है या Mountains?
कि तुमको Switzerland पसंद है या Bali?
जबकि पता है हमको,
तुम्हारा तो, दिल बसता है,
बनारस की गलियों में,
गंगा उस पार की रेेतों में,
अस्सी घाट पर बिताई शामों में।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
कि तुमको, अपने Birthday पर,
कौन सा Gift चाहिए?
वह Black वाली Dress,
ढेर सारी Dark Chocolates,
या कुछ और?
जबकि पता है हमको,
तुम्हारा कमरा किताबों,
और ख्वाबोंं से भरा पड़ा है,
तुम डूबी रहती हो उन किताबें में,
इंसानों सेे ज्यादा अच्छा तुमको,
उन Fictional Characters के साथ,
समय बिताकर लगता है।
अपने हर Birthday पर तुम,
Guess करती हो,
कौन सी किताब,
Gift करेंगे इस बार।

हम तो ऐसे ही, पूछतेे रहेंगे तुमसे,
डूबते डूबते, तुम्हारी बड़ी-बड़ी,
काजल लगाई हुई आंखोंं में,
कई घंटोंं तक, चलो, अब तुम ही बता दो,
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
सबके जवाब तो पहलेेे से हमको है पता,
और जिन सवालोंं के जवाब हमको नहीं पता,
तुम भी तो उन्हीं के जवाब ढूंढ रही हो ना?

Sunday 1 September 2019

मंदिर



कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
महादेव का यह मंदिर भी तो दुनिया सा ही है।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
ये क्या हो रहा है, कुछ समझ नहीं आ रहा है।
जो जा रहा है, आने के लिए ही,
उसको समझ में आएगा भी तो कैसे? 
हिलते डुलते, अशांत, विचलित,
अस्थिर, मैले पानी में अपना असली अक्स,
नजर आएगा भी तो कैसे?
अपना असली अक्स देखनेेे के लिए,
पानी को स्थिर, शांत, साफ करना होगा।
जो हो रहा है, वोह समझने के लिए, 
नंदी जैैैसा होना होगा।
नंदी जो स्थिर है, शांत है, सिद्ध है।
नंदी जो सबके बीच है ,फिर भी महादेव के करीब है।
कोई भी गतिमान, गतिशील, 
को समझने के लिए स्थिर होना होगा,
घूमते लट्टटु को समझने के लिए, धूरी होना होगा,
उतार-चढ़ाव को समझनेेेेे के लिए समभाव होना होगा।
जो हो रहा है, वोह समझने के लिए,
नंदीजैैै सा होना होगा।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
सबकी नजर चमकते स्वर्ण के नंदी पर है,
पर नंदी की नजर महादेव के भस्म पर है
स्वर्ण का होके भी, ना स्वर्ण का मोह है,
ना जगत की माया,महादेव के भक्ति में वोह है समाया।
जो हो रहा है, वोह समझने के लिए, 
स्वर्ण नंदी जैैैसा होना होगा।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
महादेव का यह मंदिर भी तो दुनिया सा ही है।
कोई जा रहा है, भक्त्ति की सीढ़ी चढ़कर,
वहां ,ऊपर, महादेव के पास,
लेकिन मन में अभी भी है कई सारे संदेह, 
लेकिन मन में अभी भी है कई सारे सवाल,
और कुछ मन्नते, ढेर सारी जिम्मेदारियोंं का बोझ,
किसी गृहस्थ महिला की तरह,
और मन भी है थोड़ा हताश,
कोई जा रहा है, भक्त्ति की सीढ़ी चढ़कर,
वहां, ऊपर, महादेव के पास,
वहां, ऊपर, अगर हो गई मुलाकात,
तो दूर हो जाएंगे सारे संदेह,
तो सुलझ जाएंगे सारे सवाल,
ना रहेंगी कोई मन्नतें,
ना रहेगी कुछ पाने की खुशी,
ना ही रहेगा कुछ खोनेे का गम,
फिर कोई जो आएगा वापस,
फिर वो होगा,
किसी निश्छल निर्मल मासूम बालक की तरह,
काम क्रोध मोह लोभ से कोसो दूर।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
महादेव का यह मंदिर भी तो दुनिया सा ही है।






Tuesday 20 August 2019

All is well?

Let's pretend today again,
You ask me, how I am?
And I will say, all is well.
But when you hear 'all is well' 
Don't take my words as they are
Ask me again and again and again
I may share my grief and sadness and pain,
Ask me how I am?
Ask me, when I am drunk or angry or sad,
Or all of them.
Then you may hear some bitter truth 
which I do not  tell, 
Not to you and not to parents and not to friends 
Things which are known 
to none of them.
I may say all is not well
In fact, nothing is well.
Let's pretend today again,
You ask me, how I am?
And I will say, all is well.

Sunday 4 August 2019

Friendship Day

I just wake up on a lazy Sunday,
Swilling my bed tea, Checking the phone 
lighting my cigarette, finding  the ashtray 
And I realized, It is a friendship day.
Once upon a time,
It was a damn important day.
Today, the friendship day 
is just like any other Sunday.

Those were the days, how can I forget?
The alarm clock was some crap thing,
I used to wake up by friends shouting,
My nickname and some crazy phrases, 
come out fast, be ready, 
it is not your wedding.

Those were the days, how can I forget?
Time was plenty, tensions were few
Memories were plenty, pics were few
Love was plenty, bucks were few.

Once upon a time, 
It was a damn important day.
Today, the friendship day
is just like any other Sunday.

Those were the days, how can I forget?
We were happy in Samosa and Thumbs up treats,
Pizza and burgers were reserved for some super special meets.
We were happy in two Rupee kulhad tea,
And laughs on morons who pay hundred for coffee in CCD.
We were small, dreams and ambitions were big.
Six friends, two bikes 
and roaming in the streets 
were normal things,
f**k the helmets, f**k the license, 
f**k the rules, 
we were daredevils. 

Those were the days, how can I forget?
Few games of Contra, Mario and Tank was
sensational than PUBG, fortnite and Apex Legends.
Few hundreds of pocket money were
valuable than lacs of wages.
We were singing, dancing, playing like
crazy and living our life on edges.
Yeah, I can write about those days for ages.

Once upon a time, it was a damn important day.
Today, the friendship day is just like any other Sunday.

चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।

बहुत दिन हो गया कुछ लिखें, चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं। इस दिखावटी बनावटी दुनिया में, यह लिखना ही तो है जहां अक्सर, खुद की मुलाकात होत...