Friday, 27 September 2019

मैंने देखा है।

मैंने जरूरतों में वादों से मुकरते देखा है,
मैंने जनाजो में कंधो को बदलते देखा है।

मैंने हुनर को किस्मत से लड़ते देखा है,
मैंने देश के भविष्य को ढाबो मैं बर्तन रगड़ते देखा है।

मैंने निवाला फेंकते अमीरों के रसूख को देखा है,
मैंने दो दिन से भूखे गरीब की भूख को देखा है ।

मैंने दिल्ली संसद में मेरा भारत महान चिल्लाने वालों को देखा है,
मैंने सर्दी में बिन कंबल सड़कों पर सोते-चिल्लाने वालों को देखा है।

मैंने इंडिया में दौड़़ती महंगी एसी गाड़ियों को देखा है,
मैंने भारत में पसीनो से लिपटे रिक्शा वालों को देखा है।

मैंने शहरों में होते विकास को देखा है,
मैंने गांव में किसानों के विनाश को देखा है।

मैंने सीमा रेखा पर शहीद होते जवानोंं को देखा है,
मैंने गरीबी से आत्महत्या करते किसानोंं को देखा है।

मैंने कसमें-वादे करते बेईमानों को देखा,
मैंने कुर्सी के लिए बिकते ईमानो को देखा है।

मैंने एकता सौहार्द का पाठ पढ़ाते पंडित इमाम को देखा है,
मैंने धर्म के नाम पर भाई-भाई को लड़ाते शैतान को देखा है।

मैंने दिन में एक थाली में खाते दो इंसान को देखा है,
मैंने रात में हिंदू मुसलमान करके लड़ते दो हैवान को देखा है।

मैंने छप कर बिकते अखबारों को देखा है,
मैंने बिक कर छपते अखबारोंं को देखा है।

मैंने नफा-नुकसान नापतोल करके खबर चलाने वालोंं को देखा है,
मैंने टीआरपी, ताकत, शोहरत, के भूखे उन दलालों को देखा है।

मैंने किट्टी पार्टी में पेग लगाती फेमिनिज्म की कोरी दलीलो को देखा है,
मैंने 8000 पेड़ लगाती पद्म श्री साल्लुमरदा थिमक्का को देखा है।

मैंने अद्वैत्य वेदांत के महान ज्ञान को देखा है,
मैंने जात-पात, ऊंच-नीच करते ढोंगी विद्वान को देखा है।

मैंने जरूरतों में वादों से मुकरते देखा है,
मैंने जनाजो में कंधो को बदलते देखा है।





Saturday, 14 September 2019

ख्वाब

एक आंधी आई,
साथ अपने मुसीबतें लाई,
कमरे का सारा सामान बिखर गया,
बरसों पुराने ख्वाब,
बरसों से धूल खा रहेे थे जो,
लकड़ी वाली अलमारी के,
सबसे ऊपर वाले तख्ते पर,
वह गिरे पढ़ें थे जमीन पर,
ख्वाब, जो कभी हुआ करतेे थे जिंदगी,
वह भूल से गए थे,
कहीं खो से गए थे,
जिंदगी की कशमकश में।

एक नजर मिली,
उन अपने ख्वाबों से,
ख्वाब, जो पराया कर दिए गए,
ख्वाब, जो भुला दिए गए,
ख्वाब, जो दबा दिए गए,
तो मानो ऐसा लगा, जैसे,
कहीं अचानक से टकरा गए हो,
अपने यौवन की उस पहली मोहब्बत से,
मोहब्बत, जो कभी हुआ करती थी जिंदगी,
मोहब्बत, जो भूला दी गई थी,
मोहब्बत, जो दबा दी गई थी,
समाज और रिवाज के चक्कर में,
परिवार और जात के चक्कर में,
कुंडली और मंगली के चक्कर में,
मोहब्बत, जो कभी हुआ करती थी जिंदगी,
कहीं खो सी गई थी,
जिंदगी की कशमकश में।

एक मुलाकात कराई,
बरसो पुराने ख्वाब ने,
हमारी खुद हमसे,
हम, जो बहुत बदल से गए थे,
हम, जो बहुत बिखर सेे गए थे,
हम, जो बहुत उलज से गए थे,
हम, जो बहुत पास थे,
दुनिया के सफलता के मापदंड से,
लेकिन हम जो बहुत दूर थे,
खुद की खुशी और संतुष्टि की परिभाषा से,
तो मानो ऐसा लगा,
की यह जो आंधी आई,
साथ अपने मुसीबतें लाई,
कमरे का सारा सामान बिखेर दिया,
यह आंधी आई ही है,
दिखाने उन पुराने, भूला दिए गए,
ख्वाबों को,
और उन धूल खा रहे ख्वाबोंं के सहारे,
एक मुलाकात कराने,
हमारी खुद हमसे।

एक बात हुई,
आंधी और मुसीबतों के बीच,
बहती भावनाओं और बरसते बादलों के बीच,
एक बात हुई,
मेरे पुराने ख्वाब और मेरे आज के बीच,
मेरी आज की कशमकश और पुराने खुद के बीच,
मेरी खुशी और संतुष्टि की परिभाषा,
और दुनिया के सफलता के मापदंड के बीच,
तो मानो ऐसा लगा, जैसे,
किसी सोने के पिंजड़े में कैद पंछी को,
किसी ने वापस उड़ने के लिए आजाद कर दिया हो,
किसी ऊंचे बादलों के बीच, ऊपर आसमान में,
हमेशा हमेशा के लिए।

एक एहसास हुआ,
बरसों से समाज और रिवाज,
बरसों से फायदे और नुकसान,
बरसों से डर और संदेह,
बरसों से दूसरों के सही और गलत
के कोरे ज्ञान के बीच,
एक उधार की,
बरसों से, नकली, बनावटी, खोखली, अधूरी,
जिंदगी जी रहेे थे हम,
बरसों से, जिंदगी जी नहीं,
जिंदगी काट रहे थे हम।
ख्वाब, जो कभी हुआ करतेे थे जिंदगी,
जो भूल से गए थे,
कहीं खो से गए थे,
जिंदगी की कशमकश में,
उन्हीं ख्वाबों को,
लकड़ी वाली अलमारी के,
 सबसे ऊपर वाले तख्ते से,
 उठाना और वापस दिल में बसाना,
उन्हीं ख्वाबों से,
धूल को हटाना और वापस सजाना,
उन्हीं ख्वाबों को,
एक दिन हकीकत बनाना,
ही तो जिंदगी है।

Tuesday, 10 September 2019

सवाल


तुम जो बैठी हो हमारे सामने,
अपनी उड़ती जुल्फोंं को कानों के पीछे,
फसाने की कोशिश करती हुई,
रखकर सर पर अपना दाया हाथ,
तुम्हारी झुकी हुई, बड़ी-बड़ी,
काजल लगाई हुई आंखों में,
नाराजगी देख सकते हैं हम।
उस दिन, जो instagram story,
Update की थी तुमने,
'Ask me anything' वाली,
सबने कोई ना कोई सवाल पूछा तुमसे,
लेकिन हमनेेे कोई सवाल ना पूछा।
अब तुम ही बताओ, छोड़ो यह बच्चोंं जैसी नाराजगी,
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
सबके जवाब तो पहलेेे से हमको है पता,
और जिन सवालोंं के जवाब हमको नहीं पता,
तुम भी तो उन्हीं के जवाब ढूंढ रही हो ना?

क्या सवाल पूछूं तुमसे?
किसी दिन, सुबह,
हम bed tea पीना भूल जाते हैं,
लेकिन तुम अपने ख्वाबोंं से जागते ही,
जो पहला काम करती हो,
वह है, good morning message भेजना हमको,
और यह good morning बस good morning ही नहीं,
इसका मतलब अपनी आंखों को खोलते ही,
जो पहला ख्याल आताा है तुमको,
वह हम हैं।
किसी दिन, रात को,
हम घर के दरवाजे lock करना भूल जाते हैं,
लेकिन तुम, अपने ख्वाबों में जाने से पहले,
जो आखिरी काम करती हो,
वह है, good night message भेजना हमको।
और यह, good night बस good night ही नहीं,
इसका मतलब आंखों को बंद करने से पहले,
जो आखरी खयाल आता है तुमको,
वह भी हम हैं।
किसी दिन बिना मन,
बिना भूख के भी,
खाना खा लेते हैं हम,
क्योंकि पता है हमको,
तुम, खाना खाते वक्त,
रोज, हर बार, पूछोगी हमसे,
खाना खाए कि नहीं तुम?
जो तुम, अक्सर, बात बात में,
पूछती रहती हो हमसे,
'कैसे होो', 'कैसे हो' ?
जबकि पता रहता है तुमको,
मेरा जवाब,
'अच्छा हूं ', ही होता है।
फिर भी, जो तुम पूछती रहती हो हमसे,
कैसे हो, कैसे हो?
कैसे पूछूंं तुमसे, फिर यह सवाल,
की कितनी मोहब्बत करती हो हमसे?
जब हम, हर दिन, हर वक्त,
महसूस करतेे हैं,
तुम्हारी मोहब्बत को,
तुम्हारी परवाह को,
तुम्हारी चिंता को।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
सबके जवाब तो पहलेेे से हमको है पता,
और जिन सवालोंं के जवाब हमको नहीं पता,
तुम भी तो उन्हीं के जवाब ढूंढ रही हो ना?

क्या सवाल पूछूं तुमसे? 
कि तुमको CCD का cappuccino पसंद है या 
Starbucks का?
जबकि पता है हमको,
तुम तो, वह नुक्कड़ वाली,
सोन्धे से कुल्हड़ में मिलने वाली,
अदरक वाली चाय की दीवानी हो।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
कि तुमको Chinese पसंद है या Continental?
जबकि पता है हमको,
तुम तो, वह शर्मा जी के गोलगप्पे,
आलू चाट और टमाटर चाट,
खाने के लिए, अपनेेे घर सेे,
पैसे चुराया करती थी।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
कि तुमको Trance पसंद है या Rock?
जबकि पता है हमको,
तुम तो, जब भी, अकेली होती हो,
वह गुलजार की लिखी गजलें सुनती हो,
रोज, रात को, कमरेे की बत्तियां बुझा करके,
और गुनगुनाती रहतीी है उनकी कुछ नज़्मों को।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
कि तुमको Beaches पसंद है या Mountains?
कि तुमको Switzerland पसंद है या Bali?
जबकि पता है हमको,
तुम्हारा तो, दिल बसता है,
बनारस की गलियों में,
गंगा उस पार की रेेतों में,
अस्सी घाट पर बिताई शामों में।
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
कि तुमको, अपने Birthday पर,
कौन सा Gift चाहिए?
वह Black वाली Dress,
ढेर सारी Dark Chocolates,
या कुछ और?
जबकि पता है हमको,
तुम्हारा कमरा किताबों,
और ख्वाबोंं से भरा पड़ा है,
तुम डूबी रहती हो उन किताबें में,
इंसानों सेे ज्यादा अच्छा तुमको,
उन Fictional Characters के साथ,
समय बिताकर लगता है।
अपने हर Birthday पर तुम,
Guess करती हो,
कौन सी किताब,
Gift करेंगे इस बार।

हम तो ऐसे ही, पूछतेे रहेंगे तुमसे,
डूबते डूबते, तुम्हारी बड़ी-बड़ी,
काजल लगाई हुई आंखोंं में,
कई घंटोंं तक, चलो, अब तुम ही बता दो,
क्या सवाल पूछूं तुमसे?
सबके जवाब तो पहलेेे से हमको है पता,
और जिन सवालोंं के जवाब हमको नहीं पता,
तुम भी तो उन्हीं के जवाब ढूंढ रही हो ना?

Sunday, 1 September 2019

मंदिर



कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
महादेव का यह मंदिर भी तो दुनिया सा ही है।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
ये क्या हो रहा है, कुछ समझ नहीं आ रहा है।
जो जा रहा है, आने के लिए ही,
उसको समझ में आएगा भी तो कैसे? 
हिलते डुलते, अशांत, विचलित,
अस्थिर, मैले पानी में अपना असली अक्स,
नजर आएगा भी तो कैसे?
अपना असली अक्स देखनेेे के लिए,
पानी को स्थिर, शांत, साफ करना होगा।
जो हो रहा है, वोह समझने के लिए, 
नंदी जैैैसा होना होगा।
नंदी जो स्थिर है, शांत है, सिद्ध है।
नंदी जो सबके बीच है ,फिर भी महादेव के करीब है।
कोई भी गतिमान, गतिशील, 
को समझने के लिए स्थिर होना होगा,
घूमते लट्टटु को समझने के लिए, धूरी होना होगा,
उतार-चढ़ाव को समझनेेेेे के लिए समभाव होना होगा।
जो हो रहा है, वोह समझने के लिए,
नंदीजैैै सा होना होगा।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
सबकी नजर चमकते स्वर्ण के नंदी पर है,
पर नंदी की नजर महादेव के भस्म पर है
स्वर्ण का होके भी, ना स्वर्ण का मोह है,
ना जगत की माया,महादेव के भक्ति में वोह है समाया।
जो हो रहा है, वोह समझने के लिए, 
स्वर्ण नंदी जैैैसा होना होगा।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
महादेव का यह मंदिर भी तो दुनिया सा ही है।
कोई जा रहा है, भक्त्ति की सीढ़ी चढ़कर,
वहां ,ऊपर, महादेव के पास,
लेकिन मन में अभी भी है कई सारे संदेह, 
लेकिन मन में अभी भी है कई सारे सवाल,
और कुछ मन्नते, ढेर सारी जिम्मेदारियोंं का बोझ,
किसी गृहस्थ महिला की तरह,
और मन भी है थोड़ा हताश,
कोई जा रहा है, भक्त्ति की सीढ़ी चढ़कर,
वहां, ऊपर, महादेव के पास,
वहां, ऊपर, अगर हो गई मुलाकात,
तो दूर हो जाएंगे सारे संदेह,
तो सुलझ जाएंगे सारे सवाल,
ना रहेंगी कोई मन्नतें,
ना रहेगी कुछ पाने की खुशी,
ना ही रहेगा कुछ खोनेे का गम,
फिर कोई जो आएगा वापस,
फिर वो होगा,
किसी निश्छल निर्मल मासूम बालक की तरह,
काम क्रोध मोह लोभ से कोसो दूर।
कोई जा रहा है, कोई आ रहा है,
महादेव का यह मंदिर भी तो दुनिया सा ही है।






चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं।

बहुत दिन हो गया कुछ लिखें, चलो आज फिर से कुछ लिखते हैं। इस दिखावटी बनावटी दुनिया में, यह लिखना ही तो है जहां अक्सर, खुद की मुलाकात होत...